Maithili sharan gupt small poems in hindi
स्टूडेंट्स के लिए बेहद प्रेरक हैं राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की ये कविताएं
Maithili Sharan Gupt Poems pick Youth: राष्ट्रकवि की उपाधि के सम्मानित हिंदी भाषा के प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त खड़ी बोली के पहली कवि थे.
Political biography of alexander pope authorदेशप्रेम की भावना से भरी उनकी कृति 'भारत-भारती' भारतीय स्वाधीनता संग्राम के समय में बेहद प्रभावशाली सिद्ध हुई. इसी के चलते महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की पदवी दी थी. वीर रस की उनकी कविताएं बेहद प्रेरक और युवाओं के लिए पथ-प्रदर्शक हैं. आइये पढ़ते हैं उनकी कुछ ऐसी ही रचनाएं.
(1) नहीं विघ्न-बाधाओं को हम, स्वयं बुलाने जाते हैं,
फिर भी यदि वे आ जायें तो, कभी नहीं घबड़ाते हैं.
मेरे मत में तो विपदाएं, हैं प्राकृतिक परीक्षाएं,
उनसे वही डरें, कच्ची हों, जिनकी शिक्षा-दीक्षाएं..
(2) नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को.
संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को.
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहां
फिर जा सकता वह सत्त्व कहां
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को.
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निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
मरणोंत्तर गुंजित गान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो, न निराश करो मन को.
प्रभु ने तुमको कर दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को.
किस गौरव के तुम योग्य नहीं
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं
जन हो तुम भी जगदीश्वर के
सब है जिसके अपने घर के
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को
नर हो, न निराश करो मन को.
करके विधि वाद न खेद करो
निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो
बनता बस उद्यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो.
(3) अरे भारत!
उठ, आंखें खोल,
उड़कर यंत्रों से, खगोल में घूम रहा भूगोल!
अवसर तेरे लिए खड़ा है,
फिर भी तू चुपचाप पड़ा है.
तेरा कर्मक्षेत्र बड़ा है,
पल पल है अनमोल.
अरे भारत! उठ, आंखें खोल..
बहुत हुआ अब क्या होना है,
रहा सहा भी क्या खोना है?
तेरी मिट्टी में सोना है,
तू अपने को तोल.
अरे भारत!
उठ, आंखें खोल..
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दिखला कर भी अपनी माया,
अब तक जो न जगत ने पाया;
देकर वही भाव मन भाया,
जीवन की जय बोल.
अरे भारत! उठ, आंखें खोल..
तेरी ऐसी वसुन्धरा है-
जिस पर स्वयं स्वर्ग उतरा है.
अब भी भावुक भाव भरा है,
उठे कर्म-कल्लोल.
अरे भारत! उठ, आंखें खोल..